Tuesday 5 April 2016

पीले दाँत (Yellow Teeth)

पीले दाँत (Yellow Teeth)

Yellow Teeth
दांत सिर्फ हमें भोजन चबाने में ही मदद नहीं करते, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करते हैं साफ, स्वस्थ व सुंदर दांत चेहरे का आकर्षण होते हैं। लेकिन अगर दांत पीले हो  तो यह शर्मिंदगी का भी कारण बन सकते हैं। 

दांतो का पीलापन (Yellow Teeth​ in Hindi) 
दांतों का पीलापन आज के समय में एक आम समस्या है। पीले दांतों के कारण न सिर्फ चेहरे की खूबसूरती प्रभावित होती है, बल्कि आत्मविश्वास में भी कमी आती है। दांतों के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही कई बीमारियों को आमंत्रित करती हैं
दांतों की नियमित सफाई न करना पीलेपन का कारण हो सकता है विटामिन डी की कमी दांतों की चमक खत्म कर देती

पीले दाँत के लक्षण

कान में संक्रमण (Ear Infection)

कान में संक्रमण (Ear Infection)

Ear infection
कान में संक्रमण (Ear Infection )
कान शरीर के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील अंगों में से एक हैं। शरीर का यह एक ऐसा हिस्सा है जिसका ध्यान इंसान सबसे कम रखता है। कान में संक्रमण अकसर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण (Bacterial Viral Infection) के कारण होता है जो कि मध्य कान को प्रभावित करता है  जिसमें छोटी हड्डियों की पहाड़ी बनी होती है। इसी में कान के परदे के पीछे हवा से भरी जगह होती है। 
बड़ों की तुलना में बच्चों में कान का संक्रमण तेजी से होता है क्योंकि बच्चों के कानों की सफाई बेहद कम होती है। बच्चों के कान अधिक संवेदनशील और ज्यादा जल्दी गंदे हो जाते हैं। संक्रमण होने पर कान तो अपना कार्य शांतिपूर्वक करते रहते हैं लेकिन जब इनमें पीड़ा होती है तो वह भी असहनीय होती है। 

कान के संक्रमण के प्रकार (Types of Ear Infection) 
कान को तीन भागों बाहरी कान, मध्य कान और भीतरी कान में बांटा गया है। संक्रमण कान के किसी भी हिस्से में हो सकता है। मुख्य तौर पर होने वाले तीन संक्रमण निम्न हैं: ​

1. बाहरी कान में संक्रमण (external ear infection)- बाहरी कान का संक्रमण आमतौर पर बाहरी कान तक ही सीमित होता है और यह बैक्टीरियल या फंगल के कारण होता है। बाहरी कान में संक्रमण के कुछ आम कारण हैं:
वैक्स संचय (Wax Accumulation): कान में कुछ वैक्स प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन समय के साथ यदि यही वैक्स बढ़ती जाए तो बैक्टीरिया और कवक के बढ़ने का स्थान बन जाती है, जहां आसानी से बैक्टीरिया बढ़ने लगते है, इस स्थिति को ग्रेन्युलोमा कहते हैं। ऐसे में कान में दर्द होता है और कान से पानी निकलने लगता है।
ओटिटिस एक्सटर्ना (Otitice externa)- बाहरी कान का यह संक्रमण ज्यादातर तैराकों में होता है। कान में किसी प्रकार के द्रव्य जैसे पानी आदि चले जाने पर ओटिटिस एक्सटर्ना होता है। कान के अंदर पहले से ही मौजूद बैक्टीरिया को यह द्रव और भी सकारात्मक वातावरण देते हैं। कान के अंदर तरल प्रदार्थ चले जाने से कान की वैक्स फूलने लगती है जिससे संक्रमण होता है।

2.मध्य कान में संक्रमण (Middle Ear Infection)- यह संक्रमण भी ओटिटिस माध्यम से आता है जो ज्यादातर नाक या गले में सर्दी, जुकाम और खांसी के कारण होता है। गले और नाक में होने वाली एलर्जी कान को भी प्रभावित करती है। इस दौरान गले और नाक के बैक्टीरिया मध्य कान में पहुंच सकते हैं और संक्रमण पैदा कर सकते हैं। दूध पीने वाले बच्चों में कान का संक्रण तेजी से होता है क्योंकि दूध कई बार मुंह से निकलकर कान की ओर बह जाता है। मध्य कान में संक्रमण भी दो प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं: 

एक्यूट या तेज मध्य कान संक्रमण (Acute Middle Ear Infection)- इसमें आमतौर पर तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है। यह संक्रमण छोटी अवधि का होता है जो कि थोड़ी देखभाल के बाद ठीक हो जाता है।
जीर्ण या क्रोनिक मध्य कान में संक्रमण (Chronic Middle Ear Infection)- यह संक्रमण हफ्तों या महीनों के लिए किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है। कान के इस संक्रमण को कान के दर्द, कान से किसी भी तरह के रिसाव और चिड़चिड़ेपन से पहचाना जा सकता है। यह भी तीन प्रकार का होता है-
क) इस्टेशियन ट्यूब में द्रव भरा रहता है।
ख) कान के पर्दों में छेद
ग) कान हड्डियों में कटाव

3. आंतरिक कान संक्रमण (Internal Ear Infection)- आंतरिक कान संक्रमण अमूमन ज्यादा लोगों को नहीं होता। यह कभी-कभी वायरल के दौरान हो सकता है जिसमें रक्त के माध्यम से बैक्टीरिया कान में प्रवेश कर जाते हैं जो कि कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं। यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

कान में संक्रमण के लक्षण

कान में संक्रमण कई जोखिमों को पैदा करता है। संक्रमण अगर ज्यादा अंदर नहीं गया हो तो कुछ मिनट के उपचार और प्रक्रियाओं के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन यदि यह आंतरिक स्थान तक पहुंच गया है तब ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है। कान में संक्रमण होने के कारण पीड़ित को निम्न परेशानियां हो सकती है:
* सरदर्द: कान का दर्द अकसर सर में तनाव पैदा करता है।
* बुखार: कान में दर्द के कारण तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है।
* चक्कर आना: कान का दर्द कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं।
* सुनने की क्षमता: यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

सामान्य उपचार


उपचार  (Treatment of Ear Infection in Hindi)
कान के संक्रमण से बचने के लिए सबसे जरूरी है साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना। इसके अतिरिक्त कुछ निम्न बातें पर अमल कर भी कानों के संक्रमण से बचा जा सकता है। 
वैक्स की सफाई (Cleaning of the wax)- कान में अतिरिक्त वैक्स कान में बैक्टीरिया को बढ़ाकर, कान में संक्रमण पैदा करती है। कान की वैक्स को चिकित्सकों द्वारा सूक्ष्म उपकरणों से साफ कराया जा सकता है। अमूमन लोग ईयर बड से भी कान की सफाई कर लेते हैं लेकिन यदि वेक्स ज्यादा है तो उसे ईयर बड से साफ नहीं किया जा सकता।
इयर ड्रॉप्स का प्रयोग (Use of Ear Drops)- कई दफा कान की दवा डालने से भी कान के संक्रमण से निजात मिल जाती है। चिकित्सक कान दर्द के लिए इयर ड्रॉप देते हैं जिससे कान के दर्द के साथ ही वैक्स भी निकल जाती है।
टिप्स- (Tips to Prevent Ear Infection)
- सर्दी जुकाम में अच्छी तरह से हाथ धोने के बाद ही खाना-पीना खाएं। 
- सर्दी जुकाम में बाहर जाने से बचें। भीड़ वाली जगहों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।
- धूम्रपान से बचें।
- बच्चों में टीकाकरण समय से करवाएं। उन्हें न्यूमोकोकल टीके जरूर लगवाएं।
 घरेलू उपाय- (Home Remedies)
1- कान में दर्द हो तो गैंदे के फूल को पीसकर उसका रस डालने से आराम होता है।
2- नमक को गरम करके उसे कपड़े में बांध कर कान की सिकाई करने से भी कान के दर्द से आराम मिलता है।
3- खाना बनाने वाले तेल में लहसुन डालकर तेल गरम करें। इस तेल की कुछ बूंदे तीन से चार बार कान में डालें।
4- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर कान के आस पास मलने से भी आराम होता है। ध्यान रहे रस को कान के अंदर नहीं डालना है।
5- सेब के सिरके में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रूई को उसमें भिगाएं। इस रूई को कान के पीछे कुछ देर लगाकर रखें।
6- ऑलिव ऑयल को गरम करके, गुनगुने तेल की कुछ बूंदे कान में डालें।
7- गर्म पानी की बोतल से कान की सिकाई करें।
8- प्याज को गरम करके उसे मिक्सी में पीसकर रस निकाल लें। प्याज के रस की कुछ बूंदे कान में डालें।
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rajeev sipahiya 

निमोनिया के घरेलू उपचार (Home Remedies Pneumonia)

निमोनिया के घरेलू उपचार (Home Remedies Pneumonia)

Home Remedies Pneumonia
भारत वर्ष में निमोनिया (Pneumonia), किसी अन्य बीमारी के मुकाबले, मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। 
निमोनिया मूलतः फेफड़ो (Lungs) में संक्रमण होने से होता है। 
पहले से बीमार लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) पहले से ही कमजोर होती है इसलिए स्वस्थ लोगों के मुकाबले उन्हें निमोनिया होने की संभावना अधिक होती है।  

निमोनिया के घरेलू उपचार  (Home Remedies For Pneumonia)

  • हल्दी, काली मिर्च, मेथी और अदरक जैसे प्रतिदिन उपयोग में आने वाले खाद्य प्रदार्थ फेफड़ों के लिए फायदेमंद होते हैं। 
  • तिल के बीज भी निमोनिया के उपचार में सहायक होते हैं। 300 मिलीलीटर पानी में 15 ग्राम तिल के बीज, एक चुटकी साधारण नमक, एक चम्मच
  • अलसी और एक चम्मच शहद मिलकर प्रतिदिन उपयोग करने से फेफड़ों से कफ बाहर निकलता है। 
  • ताजा अदरक का रस लेने या अदरक को चूसने से भी निमोनिया में आराम मिलता है।        
  • थोड़े से गुनगुने पानी के साथ शहद लेना भी लाभदायक रहता है।  
  • गर्म तारपीन तेल का और कपूर के मिश्रण से छाती पर मालिश करने से निमोनिया से राहत मिलती है। 
  • रोगी का कमरा स्वच्छ, और गर्म होना चाहिए। कमरे में सूर्य की रौशनी अवश्य आनी चाहिये।  
  • रोगी के शरीर को गर्म रखें, विशेषकर छाती और पैरों को।  
  • तुलसी भी निमोनिया में बहुत उपयोगी है। तुलसी के कुछ ताजे पत्तों का रस, एक चुटकी काली मिर्च में मिलकर रख लें और हर छ घंटे के बाद दें

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rajeev sipahiya

अल्सर (Ulcer)

अल्सर (Ulcer)

Ulcer
अल्सर (Ulcer)
पेट या छोटी आंतों में होने वाले अल्सर को पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer) के रूप में जाना जाता है। पेट के पेप्टिक अल्सर को गैस्ट्रिक अल्सर भी कहते हैं। अल्सर आहार और तनाव या फिर पेट में अम्ल (acid) की अतिरिक्त मात्रा जमा होने से होता है। आमाशय का अल्सर पेट के अल्सर से ज्यादा कॉमन बीमारी है। पेप्टिक अल्सर आमाशय और पेट के बीच की पतली सुरक्षा दीवार में घाव के बाद छेद हो जाने से होता है। लंबे समय तक एंटीबायोटिक्स, दर्द और स्टेरॉयड की दवा खाने के अलावा शराब के सेवन से पेट और आमाशय का अल्सर होता है। पेट में एसिड और एंजाइम के बनने से छोटी आंत के उपर आमाशय के पास छेद या घाव हो जाता है जिसे अल्सर कहते हैं।
अधिकांशतः यह हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (helicobacter pylori) नाम के एक जीवाणु के संक्रमण से होता है। कुछ लोगों में अल्सर के लक्षण आसानी से जबकि दूसरों में ये जल्दी नहीं दिखाई पड़ते हैं। कभी-कभी अल्सर उन्हें भी हो जाता है, जिन्होंने इसके किसी भी लक्षण का अनुभव नहीं किया है।

गंभीर अल्सर के लक्षण (Symptoms for Serious Ulcer)
  • अगर अल्सर का इलाज सही समय पर नहीं होता है तो अक्सर आंतरिक रक्तस्राव और अन्य समस्यायें पैदा होने लगती है।
  • उल्टी, खासकर अगर इसके साथ खून आता हो, तो यह अल्सर की काफी विकसित दशा का एक संकेत हो सकता है।
  • गहरी रंगत का, तारकोल की तरह या गोंद जैसा मल भी गंभीर अल्सर का संकेत हो सकता है।
  • मल में खून।


  • अल्सर के लक्षण:-
अल्सर के कारण (Causes of Ulcers)
कोई भी एक खास कारण नहीं होता है जो अल्सर के लिए उत्तरदायी होता है। बहुत सारे कारण के प्रभाव से अल्सर पैदा होता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि पेट और आमाशय के बाच एंजाइम और पाचक रस के असंतुलन से जो एसिड बनता है उसी से अल्सर बनता है।
आम तौर पर अधिकांश अल्सर H. Pylori बैक्टेरिया के संक्रमण से ही होता है। यह बैक्टेरिया पेट और छोटी आंत के बीच जो सुरक्षा दीवार होती है, वहीं रहता है। आमतौर पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। लेकिन इसके संक्रमण से कभी-कभी पेट के अंदरुनी सतह और आंत में सूजन हो जाती है जो बाद में अल्सर का रुप धारण कर लेता है।
पेन किलर्स और एंटी इंफ्लामेट्री दवा के लगातार सेवन से छोटी आंत और पेट के बीच की सुरक्षा दीवार में सूजन और छेद हो जाता है जिससे अल्सर होने की संभावना रहती है।
 और भी हैं कई वजह (Other Reason for Ulcer)
  • शराब और धूम्रपान का ज्यादा सेवन
  • किसी गंभीर बीमारी की वजह से
  • रेडिएशन थेरेपी की वजह से

किसे हो सकता है अल्सर (Whom May be More Prone to Ulcer)
पेट के अल्सर के ढेर सारे कारण होने पर भी जिन लोगों में इसके विकसित होने का अधिक खतरा होता है, वे हैं:
  • एच पाइलोरी बैक्टीरिया से संक्रमित लोग।
  • नियमित रूप से ड्रग्स या सुई से दवाओं का सेवन करने वाले लोग।
  • अल्सर के पारिवारिक इतिहास वाले लोग।
  • नियमित रूप से शराब पीने वाले लोग।
  • लीवर, गुर्दे, या फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों वाले लोग।
  • 50 साल से अधिक उम्र के लोग।
सामान्य उपचार
देखभाल और इलाज (Treatment for Ulcer)
अधिकांश अल्सर के घाव स्वयं ही भर जाते हैं, लेकिन कुछ गंभीर अल्सरों की पहचान और उनका इलाज इन्डोस्कोप के जरिये ही हो सकता है। इन्डोस्कोप एक छोटी सी प्रकाश युक्त नली होती है, जिसे आपकी भोजन-नली (esophagus) से अन्दर डाला जाता है।
कभी-कभी लक्षणों में सुधार का पता लगाने के लिए डॉक्टर एंटासिड दवा (Antacid) देते हैं क्योंकि पेट का अल्सर कई बार पेट और duodenum के पाचक द्रवों के बीच असंतुलन के कारण भी हो सकता है।
धूम्रपान, शराब और दर्द की दवा लेना बंद कर दीजिए। धूम्रपान और शराब दोनों ही पाचक द्रव में असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जबकि ज्यादा मात्रा में ली गई दर्द और सूजन की दवा पाचक रस के संतुलन को बाधित कर सकती है।
दूध पीना अस्थायी राहत दे सकता है, लेकिन यह एक कदम आगे और दो कदम पीछे जाने की तरह हो सकता है। दूध थोड़ी देर के लिए आपके पेट की अंदरूनी दीवार पर एक अस्तर बनाता है। लेकिन दूध पेट में अधिक एसिड बनने के लिए एक उद्दीपन भी होता है, जो आखिरकार अल्सर को और बढ़ा देगा।
 टिप्स और घरेलू उपचार (Tips to Prevent Ulcer)
  • पोहा और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लीजिए, 20 ग्राम चूर्ण को 2 लीटर पानी में सुबह घोलकर रखिए, इसे रात तक पूरा पी जाएं। अल्‍सर में आराम मिलेगा।
  • पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में लेकर जूस बना लीजिए, इस जूस को सुबह-शाम एक-एक कप पीने से पेप्टिक अल्सर के मरीजों को आराम मिलता है।
  • अल्‍सर के मरीजों के लिए गाय के दूध से बने घी का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।
  • अल्‍सर के मरीजों को बादाम का सेवन करना चाहिए, बादाम पीसकर इसका दूध बना लीजिए, इसे सुबह-शाम पीने से अल्‍सर ठीक हो जाता है।
  • सहजन के पत्‍ते को पीसकर दही के साथ पेस्ट बनाकर लें। इस पेस्‍ट का सेवन दिन में एक बार करने से अल्‍सर में फायदा होता है।

अल्सर से बचाव के लिए घरेलू उपचार (Home Remedies For Ulcer)

Home remedies for ulcer
अल्सर (ulcer) शरीर की ऊपरी त्वचा या म्यूकस झिल्ली पर उभरा हुआ घाव होता है। अल्सर ज्यादातर हेलिकोबैक्टर पायलोरी (Helicobacter pylori) नाम के जीवाणु द्वारा होता है। पेट की आंत (Intestine) में कई प्रकार के द्रव्य निकलते हैं जो भोजन को पचाने में सहायक होते हैं लेकिन जब यह द्रव्य ज्यादा मात्रा में निकलते हैं तो पेट व आंत की कोमल त्वचा को जलाने लगते हैं। इसके कारण पेट में घाव बन जाता है।

जानिए अल्सर से बचाव के घरेलू उपाय (Home remedies for ulcer):
1. पोहा (Bitten rice)- पोहा अल्सर के उपचार में बेहद फायदेमंद है। पोहा और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर की 20 ग्राम मात्रा को 2 लीटर पानी में घोलकर रख दीजिए। दोपहर से रात तक इस पानी को पूरा खत्म करें। अल्सर से राहत मिलेगी।
2. पत्ता गोभी और गाजर (Cabbage and carrot)- पत्ता गोभी में लेक्टिक एसिड होता है जिससे एमीनो एसिड बनता है जो पेट में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है। इसके साथ ही पत्ता गोभी में विटामिन सी (vitamin c) भी उच्च मात्रा में होता है। पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में मिलाकर जूस तैयार करें और सुबह शाम एक-एक कप पीएं।
3. नारियल (Coconut)- नारियल में एंटीबैक्टीरियल गुण पाये जाते हैं, जो कि अल्सर पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मार देते हैं। नारियल के दूध और पानी में भी एंटी- अल्सर गुण पाये जाते हैं। अल्सर के उपचार के लिए रोजाना नारियल पानी पीएं। नारियल के तेल का सेवन भी अल्सर से बचाता है।
4. गाय का दूध (Cow milk)- हल्दी में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, गाय के दूध में हल्दी मिलाकर पीने से भी अल्सर रोगियों को लाभ मिलता है।
5. बादाम (Almond)- अल्सर रोगियों को बादाम पीसकर, खाने से लाभ होता है। बादाम को पीसकर उसका दूध जैसा बनाकर पीएं।
6. सहजन (Drum stick)- सहजन की फली भी स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद है। इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं जो रोगों से लड़ने में सहायक होते हैं। सहजन की फली को पीसकर, दही के साथ मिलाकर खाने से अल्सर रोग में आराम मिलता है।
7. शहद (Honey)- कच्चा शहद भी पेट के अल्सर में बेहद लाभकारी है। शहद में ग्लूकोज पैरॉक्साइड (glucose peroxide) पाया जाता है, जो पेट में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म कर देता है। इसके साथ ही शहद के सेवन से पेट की जलन से भी आराम मिलता है।
8. केला (Banana)- केला में एंटीबैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। केला खाने से एसिडिटी से भी राहत मिलती है। कच्चा और पका दोनों ही तरह का केला खाने से अल्सर रोगियों को बेहद आराम मिलता है। कच्चे केले की सब्जी बनाकर उसमें एक चुटकी हींग मिलाकर खाएं।
9. लहसुन (Garlic)- लहसुन पेट के अल्सर में बेहद लाभकारी है। उपचार के लिए दो से तीन लहसुन की कलियों को कुचलकर, पानी के साथ खाएं।
10. बेलफल (Wood apple)- पेट के अल्सर में बेलफल और उसकी पत्तियों का सेवन भी बेहद लाभदायक है। पत्तियों में मौजूद टेनिन्स पेट को, किसी भी तरह के नुकसान से बचाता है। बेलफल का रस भी पेट की जलन और दर्द को दूर कर, अल्सर से बचाता है।
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रीढ़ की हड्डी की स्वास्थ्य टिप्स (Tips For Spine

रीढ़ की हड्डी की स्वास्थ्य टिप्स (Tips For Spine)

रीढ़ की हड्डी के लिए टिप्स (Tips for Spine)
  • मोटापे को नियंत्रण में रखना चाहिए क्योंकि इसका सीधा असर रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है।
  • कम्प्यूटर पर घंटों काम करने से बचना चाहिए यदि आवश्यक है तो हर एक या दो घंटे में थोड़ी देर के लिए खड़े होकर टहल लें।
  • धूम्रपान करने से भी रीढ़ की हड्डी संबंधी समस्या उत्पन्न करता है इसलिए धूम्रपान की आदत को छोड़ने का प्रयास करें।
  • दर्द से बचने के लिए नियमित व्यायाम करने चाहिए।
  • भोजन में भरपूर कैल्शियम तथा आयरन की मात्रा का ध्यान रखाना चाहिए।
कैसें करें रीढ़ की हड्डी की देखभाल (Care for Spine)
  • शरीर का एक मुख्य भाग होने के कारण रीढ़ की हड्डी की मजबूती पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • रीढ़ की हड्डी में यदि तकलीफ है तो उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
  • व्यक्ति को अधिक वजन नहीं उठाना चाहिए और अपने वजन को बढ़ने से रोकना चाहिए।
  • भोजन में आयरनयुक्त खाना ही खाना चाहिए तथा हड्डियों को मजबूत रखने के लिए दूध जरूर पीना चाहिए।
  • धूम्रपान और शराब के दोनों ही रीढ़ की हड्डी के लिए अच्छे नहीं होते हैं, अतः इनका उपयोग न करे और अगर करें तो मात्रा पर नियंत्रण रखें।
रीढ़ की हड्डी के लिए टिप्स (Tips for Spine)
  • मोटापे को नियंत्रण में रखना चाहिए क्योंकि इसका सीधा असर रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है।
  • कम्प्यूटर पर घंटों काम करने से बचना चाहिए यदि आवश्यक है तो हर एक या दो घंटे में थोड़ी देर के लिए खड़े होकर टहल लें।
  • धूम्रपान करने से भी रीढ़ की हड्डी संबंधी समस्या उत्पन्न करता है इसलिए धूम्रपान की आदत को छोड़ने का प्रयास करें।
  • दर्द से बचने के लिए नियमित व्यायाम करने चाहिए।
  • भोजन में भरपूर कैल्शियम तथा आयरन की मात्रा का ध्यान रखाना चाहिए।
rajeev sipahiya  dated:05/april/2016
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रोहित कि उम्मीद की किरण


  1.  रोहित की सर्जरी POST.GRADUATE.INSTITUTE-CHANDIGARH-ATC  - मार्च 2016 (BY PGI DOCTOR ASSOCIATE PROFFESSOR-(SPINE) SARVJEET SINGH DHATT  (NEW OPD-2009)



  1. GOVT.MEDICAL.COLLEGE HOSPITAL-32 CHD (ऑन BED ) 2010 






नाम रोहित कुमार 
छात्र -ग्याहरवीं
विद्यालय-पोहज (रा. बा.मा.पाठ )
जुलाई माह २०१०  -फॉल फ्रॉम हाइट (ट्री )आम 


आकस्मिक पेड़ से सर के बल गिरना ,गुम घातक चोट आने के कारण ,प्रथम  उपचार हेतु  नजदीकी स्वस्थ्य केंद्र ऊहल  ले जाना ,लेकिन वहां पर स्थिति गंभीर होते हुए जोनल हॉस्पिटल -हमीरपुर रेफेर  किया गया ,लेकिन वहां पर भी सही सुविधा  न होने के कारण ,उस को अन्य हस्पताल के लिए कहा गया ,टी.एम.सी -काँगड़ा  और (आई. जी.एम सी -शिमला ) मैं संपर्क किया तोह कहा की डॉक्टर नहीं है ,फिर रोहित कुमार को जालंधर निजी हस्पताल ले जाया गया ,वहां पर सभी टेस्ट लिए गए ,लेकिन उन्होंने उपचार सम्बन्धी सुधार को न के बराबर बताया कहा की बहुत घातक चोट है  जोखिम भरा काम है  और तोह और रोगी को खाना  खाने के लिए तक मना कर दिया गया ,स्थिति मैं सुधार न होता देख रोहित कुमार को GMCH -32 CHD  ले जाया गया ,उसका उपचार फिर नए सिरे से शुरू  हुआ ,लेकिन वहां पर खाने पीने मैं कोई रोक न थी ,पूरा एक माह वह रहने पर कोई सुधार  न हुआ  वहां पर बस उम्मीद और निराशा का ही संकेत हुआ ,रोहित का शरीर छाती से निचे पैरालाइसिस हो चुका था, हम ने सोचा कि इतना बड़ा हस्पताल हर तरह के काबिल चिकित्सक  लेकिन हर डॉक्टर ने  XRAY -MRI  को देख कर यह कहना कि  बहुत ही घातक चोट है फिर वहां  से रोहित कुमार को डिस्चार्ज कर दिया गया  उसको घर ले जाया गया ,घर मैं हर तरह का देसी उपचार हुआ , लेकिन धीरे धीरे उसके शरीर  मैं कुछ सुधार हुआ ,
हमे उम्मीद की किरण दिखी ,हम ने चंडीगढ़ (पी.जी.आई ) दिखाने का निश चय किया  रोहित को   पी.जी.आई  में  ऑर्थोपेडिक्स  हेड  के  समक्ष ले जाया गया ,उन्हों ने अपने सीनियर रेजिडेंट को दिखाने को कहा ,उन्होंने भी रिपोर्ट के आधार पर निराशा का संकेत दिया , रोहित को लेकर बापिस घर आना पड़ा ,इस बारे केंद्रीय स्वस्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को बताया गया था ,फिर उनके पत्र  आदेश पर हम फिर रोहित को लेकर  पी.जी.आई  ले गए वहां पर फिर हम ने  ऑर्थोपेडिक्स हेड एम.एस.ढिल्लों  जी से संपर्क किया फिर उन्होंने स्पाइन डॉक्टर से दिखाने को कहा ,रोहित को  स्पाइन सर्जन  एसोसिएट प्रोफ़ेसर  डॉक्टर सर्वजीत सिंह धत्त को दिखाया गया ,और उनका रिपोर्ट देख जो हिदायत थी वह वाक्य मैं ही एक तज़ुर्बे कार की सोच/अमल मैं लाने हेतु  थी मतलब यह था की उन्होंने यही कहा की इस का ऑपरेशन होना चाहिए था ,क्यों नहीं हुआ  हम इस का ऑपरेशन अति अवशय करेंगे 
इन् की  हाल मैं ही स्पाइन कि  सर्जरी की गयी ,जो की प्रभु कृपा से कामयाब रही ,अतः  स्नातकोत्तर चिकित्सालय  चंडीगढ़ (पी.जी.आई )के काबिल स्पाइन सर्जन एसोसिएट प्रोफ़ेसर  डॉक्टर सर्वजीत सिंह धत्त 
जी ने अपने काबिल तज़ुर्बा  दिखाते  हुए एक निराश अक्षम रोगी के लिए बरदान साबित हुए हैं उन  काबिल डॉक्टर को वाहे गुरु नेकी ,व तजुर्बा उनकी झोली मैं भरता रहे ,ताकि वह हर निराश रोगी को सही निदान दिलवा सकें ,  मैं हिमाचल सरकार से इस बारे अवश्य गुजारिस करूँगा की ऐसे काबिल सर्जन को भी हिमाचल के हस्पतालों में  एक /दो दिन के लिए नियुक्त  किया जाये ,ताकि हिमाचल की गरीब जनता को अन्य प्रदेश मैं भटकना न पड़े , 
अतः  राहित को अब उम्मीद   की में अब चल फिर  सकूंगा  भगवान्  उसकी उम्मीद को बनायें रखे   
                शुभेछा के साथ 
                                 धन्यबाद 
 रोहित कुमार     

स्पाइन C5-C6 SURGERY
रोहित कुमार का MRI 
रोहित कुमार का यह छः वर्ष का कठिन अनुभब यही कहता है की कभी किसी को मेरी तरह घातक चोट  न आये ,यह मानव रुपी शरीर बहुत मूल्यवान है इसका मोल पहचानिए ,इस की रक्षा करना हमारा परम कर्त्तव्य है 
मेरे भाई बंधु  ध्यान से सफर करे वाहन चालक वाहन सावधानी से चलायें ,क्योंकि इस भाग-दौड़  की ज़िन्दगी में हर कोई एक दूसरे से आगे भागना चाहता  है कभी इतना आगे की पीछे फिर कुछ न दिखे 
इस लिए हर काम ध्यान से करें अपने  आप और अपने परिवार से प्यार करें 
          जय बम भोले ** जय शनि देव महाराज की जय *** "कालो  के काल महाकाल "की जय              


रोहित कि  उम्मीद की किरण
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राजीव सिपहिया 

Monday 4 April 2016

वाकविकार (Dyslexia)

वाकविकार (Dyslexia)

Dyslexia
डिस्लेक्सिया कोई बीमारी नहीं है और न ही यह कोई मानसिक अयोग्यता है। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) पढ़ने-लिखने से संबंधी एक विकार है, जिसमें बच्चों को शब्दों को पहचानने, पढ़ने, याद करने और बोलने में परेशानी आती है। वे कुछ अक्षरों और शब्दों को उल्टा पढ़ते हैं और कुछ अक्षरों का उच्चारण भी नहीं कर पाते। उनकी पढ़ने की रफ्तार और बच्चों की अपेक्षा काफी कम होती है ।

यह विकार ३-१५ साल के सामान्य जनसंख्या के लगभग ३% बच्चों में पाया जाता है। कई माता-पिता डिस्लेक्सिया को मानसिक रोग से जोड़ते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। डिस्लेक्सिया को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है।

वाकविकार के लक्षण

  • वंशानुगत (Herediatary), यह तंत्रिका तंत्र (Nervous System) की समस्या है, जो जन्म पूर्व कारकों पर निर्भर करती हैं। 
  • माता के संतुलित आहार की कमी, धूम्रपान का सेवन भी इसके कारण हो सकते हैं।
  • बच्चों में कुपोषण भी इसका एक बड़ा कारण है।
    • कुछ केस में बच्चे के जन्म से पहले ही डिस्लेक्सिया का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में डॉक्टर उन गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार लेने की सलाह के साथ साथ कुछ विशेष दवाओं से संबंधित सलाह देते हैं।
    • जिन मामलों में जन्म के बाद डिस्लेक्सिया का पता लगता है, उन बच्चों को ज्यादा समय देकर संभाला जा सकता है। इन बच्चों की समझ धीमी होती है, इसलिए इन्हें ज्यादा समय देने की आवश्यकता होती है।
    • डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के साथ अपना पढ़ने का अपना तरीका बदलें, चीजों को आसान करके बताएं, तोड़-तोड़कर समझाएं। चित्रों और कहानियों का सहारा लें। जिन अक्षरों को पहचानने और लिखने में समस्या होती है, उन्हें बार-बार लिखवाए।
    • वोकेशनल ट्रेनिंग कराएं।
    दिनाक अप्रैल २०१६ 
    राजीव सिपहिया हमीरपुर