Tuesday 5 April 2016

कान में संक्रमण (Ear Infection)

कान में संक्रमण (Ear Infection)

Ear infection
कान में संक्रमण (Ear Infection )
कान शरीर के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील अंगों में से एक हैं। शरीर का यह एक ऐसा हिस्सा है जिसका ध्यान इंसान सबसे कम रखता है। कान में संक्रमण अकसर बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण (Bacterial Viral Infection) के कारण होता है जो कि मध्य कान को प्रभावित करता है  जिसमें छोटी हड्डियों की पहाड़ी बनी होती है। इसी में कान के परदे के पीछे हवा से भरी जगह होती है। 
बड़ों की तुलना में बच्चों में कान का संक्रमण तेजी से होता है क्योंकि बच्चों के कानों की सफाई बेहद कम होती है। बच्चों के कान अधिक संवेदनशील और ज्यादा जल्दी गंदे हो जाते हैं। संक्रमण होने पर कान तो अपना कार्य शांतिपूर्वक करते रहते हैं लेकिन जब इनमें पीड़ा होती है तो वह भी असहनीय होती है। 

कान के संक्रमण के प्रकार (Types of Ear Infection) 
कान को तीन भागों बाहरी कान, मध्य कान और भीतरी कान में बांटा गया है। संक्रमण कान के किसी भी हिस्से में हो सकता है। मुख्य तौर पर होने वाले तीन संक्रमण निम्न हैं: ​

1. बाहरी कान में संक्रमण (external ear infection)- बाहरी कान का संक्रमण आमतौर पर बाहरी कान तक ही सीमित होता है और यह बैक्टीरियल या फंगल के कारण होता है। बाहरी कान में संक्रमण के कुछ आम कारण हैं:
वैक्स संचय (Wax Accumulation): कान में कुछ वैक्स प्राकृतिक रूप से होती है लेकिन समय के साथ यदि यही वैक्स बढ़ती जाए तो बैक्टीरिया और कवक के बढ़ने का स्थान बन जाती है, जहां आसानी से बैक्टीरिया बढ़ने लगते है, इस स्थिति को ग्रेन्युलोमा कहते हैं। ऐसे में कान में दर्द होता है और कान से पानी निकलने लगता है।
ओटिटिस एक्सटर्ना (Otitice externa)- बाहरी कान का यह संक्रमण ज्यादातर तैराकों में होता है। कान में किसी प्रकार के द्रव्य जैसे पानी आदि चले जाने पर ओटिटिस एक्सटर्ना होता है। कान के अंदर पहले से ही मौजूद बैक्टीरिया को यह द्रव और भी सकारात्मक वातावरण देते हैं। कान के अंदर तरल प्रदार्थ चले जाने से कान की वैक्स फूलने लगती है जिससे संक्रमण होता है।

2.मध्य कान में संक्रमण (Middle Ear Infection)- यह संक्रमण भी ओटिटिस माध्यम से आता है जो ज्यादातर नाक या गले में सर्दी, जुकाम और खांसी के कारण होता है। गले और नाक में होने वाली एलर्जी कान को भी प्रभावित करती है। इस दौरान गले और नाक के बैक्टीरिया मध्य कान में पहुंच सकते हैं और संक्रमण पैदा कर सकते हैं। दूध पीने वाले बच्चों में कान का संक्रण तेजी से होता है क्योंकि दूध कई बार मुंह से निकलकर कान की ओर बह जाता है। मध्य कान में संक्रमण भी दो प्रकार के होते हैं, जो निम्न हैं: 

एक्यूट या तेज मध्य कान संक्रमण (Acute Middle Ear Infection)- इसमें आमतौर पर तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है। यह संक्रमण छोटी अवधि का होता है जो कि थोड़ी देखभाल के बाद ठीक हो जाता है।
जीर्ण या क्रोनिक मध्य कान में संक्रमण (Chronic Middle Ear Infection)- यह संक्रमण हफ्तों या महीनों के लिए किसी भी व्यक्ति को परेशान कर सकता है। कान के इस संक्रमण को कान के दर्द, कान से किसी भी तरह के रिसाव और चिड़चिड़ेपन से पहचाना जा सकता है। यह भी तीन प्रकार का होता है-
क) इस्टेशियन ट्यूब में द्रव भरा रहता है।
ख) कान के पर्दों में छेद
ग) कान हड्डियों में कटाव

3. आंतरिक कान संक्रमण (Internal Ear Infection)- आंतरिक कान संक्रमण अमूमन ज्यादा लोगों को नहीं होता। यह कभी-कभी वायरल के दौरान हो सकता है जिसमें रक्त के माध्यम से बैक्टीरिया कान में प्रवेश कर जाते हैं जो कि कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं। यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

कान में संक्रमण के लक्षण

कान में संक्रमण कई जोखिमों को पैदा करता है। संक्रमण अगर ज्यादा अंदर नहीं गया हो तो कुछ मिनट के उपचार और प्रक्रियाओं के द्वारा इसे ठीक किया जा सकता है लेकिन यदि यह आंतरिक स्थान तक पहुंच गया है तब ऑपरेशन की नौबत भी आ सकती है। कान में संक्रमण होने के कारण पीड़ित को निम्न परेशानियां हो सकती है:
* सरदर्द: कान का दर्द अकसर सर में तनाव पैदा करता है।
* बुखार: कान में दर्द के कारण तीव्र दर्द, जलन और बुखार हो सकता है।
* चक्कर आना: कान का दर्द कई बार सिर में चक्कर आने का कारण बन जाते हैं।
* सुनने की क्षमता: यदि इस इंफेक्शन को लंबे समय तक अनदेखा किया जाए तो कान की सुनने की शक्ति खत्म हो सकती है।

सामान्य उपचार


उपचार  (Treatment of Ear Infection in Hindi)
कान के संक्रमण से बचने के लिए सबसे जरूरी है साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना। इसके अतिरिक्त कुछ निम्न बातें पर अमल कर भी कानों के संक्रमण से बचा जा सकता है। 
वैक्स की सफाई (Cleaning of the wax)- कान में अतिरिक्त वैक्स कान में बैक्टीरिया को बढ़ाकर, कान में संक्रमण पैदा करती है। कान की वैक्स को चिकित्सकों द्वारा सूक्ष्म उपकरणों से साफ कराया जा सकता है। अमूमन लोग ईयर बड से भी कान की सफाई कर लेते हैं लेकिन यदि वेक्स ज्यादा है तो उसे ईयर बड से साफ नहीं किया जा सकता।
इयर ड्रॉप्स का प्रयोग (Use of Ear Drops)- कई दफा कान की दवा डालने से भी कान के संक्रमण से निजात मिल जाती है। चिकित्सक कान दर्द के लिए इयर ड्रॉप देते हैं जिससे कान के दर्द के साथ ही वैक्स भी निकल जाती है।
टिप्स- (Tips to Prevent Ear Infection)
- सर्दी जुकाम में अच्छी तरह से हाथ धोने के बाद ही खाना-पीना खाएं। 
- सर्दी जुकाम में बाहर जाने से बचें। भीड़ वाली जगहों पर संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है।
- धूम्रपान से बचें।
- बच्चों में टीकाकरण समय से करवाएं। उन्हें न्यूमोकोकल टीके जरूर लगवाएं।
 घरेलू उपाय- (Home Remedies)
1- कान में दर्द हो तो गैंदे के फूल को पीसकर उसका रस डालने से आराम होता है।
2- नमक को गरम करके उसे कपड़े में बांध कर कान की सिकाई करने से भी कान के दर्द से आराम मिलता है।
3- खाना बनाने वाले तेल में लहसुन डालकर तेल गरम करें। इस तेल की कुछ बूंदे तीन से चार बार कान में डालें।
4- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर कान के आस पास मलने से भी आराम होता है। ध्यान रहे रस को कान के अंदर नहीं डालना है।
5- सेब के सिरके में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रूई को उसमें भिगाएं। इस रूई को कान के पीछे कुछ देर लगाकर रखें।
6- ऑलिव ऑयल को गरम करके, गुनगुने तेल की कुछ बूंदे कान में डालें।
7- गर्म पानी की बोतल से कान की सिकाई करें।
8- प्याज को गरम करके उसे मिक्सी में पीसकर रस निकाल लें। प्याज के रस की कुछ बूंदे कान में डालें।
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rajeev sipahiya 

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